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दिल-ए-फ़सुर्दा में कुछ सोज़ ओ साज़ बाक़ी है | शाही शायरी
dil-e-fasurda mein kuchh soz o saz baqi hai

ग़ज़ल

दिल-ए-फ़सुर्दा में कुछ सोज़ ओ साज़ बाक़ी है

अख़्तर अंसारी

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दिल-ए-फ़सुर्दा में कुछ सोज़ ओ साज़ बाक़ी है
वो आग बुझ गई लेकिन गुदाज़ बाक़ी है

नियाज़-केश भी मेरी तरह न हो कोई
उमीद मर चुकी ज़ौक-ए-नियाज़ बाक़ी है

वो इब्तिदा-ए-मोहब्बत की लज़्ज़तें वल्लाह
कि अब भी रूह में इक एहतिज़ाज़ बाक़ी है

न साज़-ए-दिल है अब 'अख़्तर' न हुस्न की मिज़राब
मगर वो फ़ितरत-ए-नग़्मा-नवाज़ बाक़ी है