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आईना-ए-निगाह में अक्स-ए-शबाब है | शाही शायरी
aaina-e-nigah mein aks-e-shabab hai

ग़ज़ल

आईना-ए-निगाह में अक्स-ए-शबाब है

अख़्तर अंसारी

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आईना-ए-निगाह में अक्स-ए-शबाब है
दुनिया समझ रही है कि आँखों में ख़्वाब है

रोए बग़ैर चारा न रोने की ताब है
क्या चीज़ उफ़ ये कैफ़ियत-ए-इज़्तिराब है

ऐ सोज़-ए-जाँ-गुदाज़ अभी मैं जवान हूँ
ऐ दर्द-ए-ला-इलाज ये उम्र-ए-शबाब है