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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

बदलती रुत का नौहा सुन रहा है
नदी सोई है जंगल जागता है

शीन काफ़ निज़ाम




बरसों से घूमता है इसी तरह रात दिन
लेकिन ज़मीन मिलती नहीं आसमान को

शीन काफ़ निज़ाम




बरसों से घूमता है इसी तरह रात दिन
लेकिन ज़मीन मिलती नहीं आसमान को

शीन काफ़ निज़ाम




बीच का बढ़ता हुआ हर फ़ासला ले जाएगा
एक तूफ़ाँ आएगा सब कुछ बहा ले जाएगा

शीन काफ़ निज़ाम




चुभन ये पीठ में कैसी है मुड़ के देख तो ले
कहीं कोई तुझे पीछे से देखता होगा

शीन काफ़ निज़ाम




चुभन ये पीठ में कैसी है मुड़ के देख तो ले
कहीं कोई तुझे पीछे से देखता होगा

शीन काफ़ निज़ाम




दरवाज़ा कोई घर से निकलने के लिए दे
बे-ख़ौफ़ कोई रास्ता चलने के लिए दे

शीन काफ़ निज़ाम