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वही न मिलने का ग़म और वही गिला होगा | शाही शायरी
wahi na milne ka gham aur wahi gila hoga

ग़ज़ल

वही न मिलने का ग़म और वही गिला होगा

शीन काफ़ निज़ाम

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वही न मिलने का ग़म और वही गिला होगा
मैं जानता हूँ मुझे उस ने क्या लिखा होगा

किवाड़ों पर लिखी अबजद गवाही देती है
वो हफ़्त-रंगी कहीं चाक ढूँढता होगा

पुराने वक़्तों का है क़स्र ज़िंदगी मेरी
तुम्हारा नाम भी इस में कहीं लिखा होगा

चुभन ये पीठ में कैसी है मुड़ के देख तो ले
कहीं कोई तुझे पीछे से देखता होगा

गली के मोड़ से घर तक अँधेरा क्यूँ है 'निज़ाम'
चराग़ याद का उस ने बुझा दिया होगा