छीन कर वो लज़्ज़त-ए-सौत-ओ-सदा ले जाएगा
हाथ शल कर जाएगा हर्फ़-ए-दुआ ले जाएगा
बीच का बढ़ता हुआ हर फ़ासला ले जाएगा
एक तूफ़ाँ आएगा सब कुछ बहा ले जाएगा
देखना बढ़ता हुआ ये ख़्वाहिशों का सिलसिला
मौज-ए-ख़ूँ दिखलाएगा रंग-ए-हिना ले जाएगा
बे-मुक़द्दर छोड़ जाएगा सभी पेशानियाँ
रौशनी आँखों की सीने की ज़िया ले जाएगा
घर से जाते वक़्त वो अब के बुज़ुर्गों की दुआ
ले तो जाएगा मगर डरता हुआ ले जाएगा
लम्स में मिल जाएगा आवाज़ का असरार भी
पानियों के पैकरों को भी उठा ले जाएगा
इक परिंदा रात की चौखट पे आएगा 'निज़ाम'
देखना है देगा क्या और हम से क्या ले जाएगा
ग़ज़ल
छीन कर वो लज़्ज़त-ए-सौत-ओ-सदा ले जाएगा
शीन काफ़ निज़ाम