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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

हम 'कबीर' इस काल के खड़े हैं ख़ाली हाथ
संग किसी के हम नहीं और हम सब के साथ

शीन काफ़ निज़ाम




जिन से अँधेरी रातों में जल जाते थे दिए
कितने हसीन लोग थे क्या जाने क्या हुए

शीन काफ़ निज़ाम




कहाँ जाती हैं बारिश की दुआएँ
शजर पर एक भी पत्ता नहीं है

शीन काफ़ निज़ाम




कहाँ जाती हैं बारिश की दुआएँ
शजर पर एक भी पत्ता नहीं है

शीन काफ़ निज़ाम




किसी के साथ अब साया नहीं है
कोई भी आदमी पूरा नहीं है

शीन काफ़ निज़ाम




कोई दुआ कभी तो हमारी क़ुबूल कर
वर्ना कहेंगे लोग दुआ से असर गया

शीन काफ़ निज़ाम




कोई दुआ कभी तो हमारी क़ुबूल कर
वर्ना कहेंगे लोग दुआ से असर गया

शीन काफ़ निज़ाम