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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

मन में धरती सी ललक आँखों में आकाश
याद के आँगन में रहा चेहरे का प्रकाश

शीन काफ़ निज़ाम




मन रफ़्तार से भागता जाता है किस ओर
पलक झपकते शाम है पलक झपकते भोर

शीन काफ़ निज़ाम




मन रफ़्तार से भागता जाता है किस ओर
पलक झपकते शाम है पलक झपकते भोर

शीन काफ़ निज़ाम




मंज़र को किसी तरह बदलने की दुआ दे
दे रात की ठंडक को पिघलने की दुआ दे

शीन काफ़ निज़ाम




निकले कभी न घर से मगर इस के बावजूद
अपनी तमाम उम्र सफ़र में गुज़र गई

शीन काफ़ निज़ाम




निकले कभी न घर से मगर इस के बावजूद
अपनी तमाम उम्र सफ़र में गुज़र गई

शीन काफ़ निज़ाम




पत्तियाँ हो गईं हरी देखो
ख़ुद से बाहर भी तो कभी देखो

शीन काफ़ निज़ाम