मन में धरती सी ललक आँखों में आकाश
याद के आँगन में रहा चेहरे का प्रकाश
शीन काफ़ निज़ाम
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मन रफ़्तार से भागता जाता है किस ओर
पलक झपकते शाम है पलक झपकते भोर
शीन काफ़ निज़ाम
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मन रफ़्तार से भागता जाता है किस ओर
पलक झपकते शाम है पलक झपकते भोर
शीन काफ़ निज़ाम
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मंज़र को किसी तरह बदलने की दुआ दे
दे रात की ठंडक को पिघलने की दुआ दे
शीन काफ़ निज़ाम
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निकले कभी न घर से मगर इस के बावजूद
अपनी तमाम उम्र सफ़र में गुज़र गई
शीन काफ़ निज़ाम
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निकले कभी न घर से मगर इस के बावजूद
अपनी तमाम उम्र सफ़र में गुज़र गई
शीन काफ़ निज़ाम
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पत्तियाँ हो गईं हरी देखो
ख़ुद से बाहर भी तो कभी देखो
शीन काफ़ निज़ाम
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