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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

अब तो मय-ख़ानों से भी कुछ बढ़ कर
जाम चलते हैं ख़ानक़ाहों में

शरफ़ मुजद्दिदी




अल्लाह अल्लाह ख़ुसूसिय्यत-ए-ज़ात-ए-हसनैन
सारी उम्मत के हैं पोतों से नवासे बढ़ कर

शरफ़ मुजद्दिदी




दिल में मिरे जिगर में मिरे आँख में मिरी
हर जा है दोस्त और नहीं मिलती है जा-ए-दोस्त

शरफ़ मुजद्दिदी




दिल में मिरे जिगर में मिरे आँख में मिरी
हर जा है दोस्त और नहीं मिलती है जा-ए-दोस्त

शरफ़ मुजद्दिदी




दुख़्त-ए-रज़ और तू कहाँ मिलती
खींच लाए शराब-ख़ाने से

शरफ़ मुजद्दिदी




दुख़्त-ए-रज़ ज़ाहिद से बोली मुझ से घबराते हो क्यूँ
क्या तुम्हीं हो पाक-दामन पारसा मैं भी तो हूँ

शरफ़ मुजद्दिदी




दुख़्त-ए-रज़ ज़ाहिद से बोली मुझ से घबराते हो क्यूँ
क्या तुम्हीं हो पाक-दामन पारसा मैं भी तो हूँ

शरफ़ मुजद्दिदी