हर जफ़ा उन की हुई हम को वफ़ा से बढ़ कर
अब निकालें वो कोई ज़ुल्म जफ़ा से बढ़ कर
सर-ए-तस्लीम है ख़म तेरी रज़ा के आगे
दे वो रुत्बा जो है तस्लीम-ओ-रज़ा से बढ़ कर
कम-सिनी जिन की हमें याद है और कल की ही बात
आज उन्हें देखिए क्या हो गए क्या से बढ़ कर
अल्लाह अल्लाह ख़ुसूसिय्यत-ए-ज़ात-ए-हसनैन
सारी उम्मत के हैं पोतों से नवासे बढ़ कर
तजरबा कर लिया और देख लिया सब को 'शरफ़'
कोई हमदर्द नहीं याद-ए-ख़ुदा से बढ़ कर
ग़ज़ल
हर जफ़ा उन की हुई हम को वफ़ा से बढ़ कर
शरफ़ मुजद्दिदी