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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

एक को एक नहीं रश्क से मरने देता
ये नया कूचा-ए-क़ातिल में तमाशा देखा

शरफ़ मुजद्दिदी




हैरत में हूँ इलाही क्यूँ-कर ये ख़त्म होगा
कोताह रोज़-ए-महशर क़िस्सा दराज़ मेरा

शरफ़ मुजद्दिदी




हैरत में हूँ इलाही क्यूँ-कर ये ख़त्म होगा
कोताह रोज़-ए-महशर क़िस्सा दराज़ मेरा

शरफ़ मुजद्दिदी




हज़रत-ए-नासेह भी मय पीने लगे
अब मुझे समझाने वाला कौन था

शरफ़ मुजद्दिदी




इंतिहा-ए-मअरिफ़त से ऐ 'शरफ़'
मैं ने जो देखा जो समझा कुछ न था

शरफ़ मुजद्दिदी




इंतिहा-ए-मअरिफ़त से ऐ 'शरफ़'
मैं ने जो देखा जो समझा कुछ न था

शरफ़ मुजद्दिदी




इस पर्दे में ये हुस्न का आलम है इलाही
बे-पर्दा वो हो जाएँ तो क्या जानिए क्या हो

शरफ़ मुजद्दिदी