एक को एक नहीं रश्क से मरने देता
ये नया कूचा-ए-क़ातिल में तमाशा देखा
शरफ़ मुजद्दिदी
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हैरत में हूँ इलाही क्यूँ-कर ये ख़त्म होगा
कोताह रोज़-ए-महशर क़िस्सा दराज़ मेरा
शरफ़ मुजद्दिदी
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हैरत में हूँ इलाही क्यूँ-कर ये ख़त्म होगा
कोताह रोज़-ए-महशर क़िस्सा दराज़ मेरा
शरफ़ मुजद्दिदी
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हज़रत-ए-नासेह भी मय पीने लगे
अब मुझे समझाने वाला कौन था
शरफ़ मुजद्दिदी
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इंतिहा-ए-मअरिफ़त से ऐ 'शरफ़'
मैं ने जो देखा जो समझा कुछ न था
शरफ़ मुजद्दिदी
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इंतिहा-ए-मअरिफ़त से ऐ 'शरफ़'
मैं ने जो देखा जो समझा कुछ न था
शरफ़ मुजद्दिदी
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इस पर्दे में ये हुस्न का आलम है इलाही
बे-पर्दा वो हो जाएँ तो क्या जानिए क्या हो
शरफ़ मुजद्दिदी
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