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रोक दे मौत को भी आने से | शाही शायरी
rok de maut ko bhi aane se

ग़ज़ल

रोक दे मौत को भी आने से

शरफ़ मुजद्दिदी

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रोक दे मौत को भी आने से
कौन उठे तेरे आस्ताने से

बिजलियाँ गिरती हैं गिरें हम पर
उन को मतलब है मुस्कुराने से

हो मुबारक शबाब की दौलत
कुछ तो दिलवा लिए ख़ज़ाने से

दुख़्त-ए-रज़ और तू कहाँ मिलती
खींच लाए शराब-ख़ाने से

जान पर बन गई 'शरफ़' आख़िर
क्या मिला हाए दिल लगाने से