बहुत कम बोलना अब कर दिया है
कई मौक़ों पे ग़ुस्सा भी पिया है
शम्स तबरेज़ी
बनाएँगे नई दुनिया हम अपनी
तिरी दुनिया में अब रहना नहीं है
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
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बनाएँगे नई दुनिया हम अपनी
तिरी दुनिया में अब रहना नहीं है
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
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ये अज़ाबों का सिलसिला क्या है
बाढ़ बीमारी ज़लज़ला क्या है
शान भारती
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मैं आ रहा हूँ अभी चूम कर बदन उस का
सुना था आग पे बोसा रक़म नहीं होता
शनावर इस्हाक़
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आलम-ए-इश्क़ में अल्लाह-रे नज़र की वुसअत
नुक़्ता-ए-वहम हुआ गुम्बद-ए-गर्दूं मुझ को
शरफ़ मुजद्दिदी
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आलम-ए-इश्क़ में अल्लाह-रे नज़र की वुसअत
नुक़्ता-ए-वहम हुआ गुम्बद-ए-गर्दूं मुझ को
शरफ़ मुजद्दिदी
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