जी में आता है कि फूलों की उड़ा दूँ ख़ुशबू
रंग उड़ा लाए हैं ज़ालिम तिरी रानाई का
शरफ़ मुजद्दिदी
जी में आता है कि फूलों की उड़ा दूँ ख़ुशबू
रंग उड़ा लाए हैं ज़ालिम तिरी रानाई का
शरफ़ मुजद्दिदी
जिस को चाहा तू ने उस को मिल गया
वर्ना तुझ को पाने वाला कौन था
शरफ़ मुजद्दिदी
कम-सिनी जिन की हमें याद है और कल की ही बात
आज उन्हें देखिए क्या हो गए क्या से बढ़ कर
शरफ़ मुजद्दिदी
कम-सिनी जिन की हमें याद है और कल की ही बात
आज उन्हें देखिए क्या हो गए क्या से बढ़ कर
शरफ़ मुजद्दिदी
पामालियों का ज़ीना है अर्श से भी ऊँचा
दिल उस की राह में है क्या सरफ़राज़ मेरा
शरफ़ मुजद्दिदी
पारसा बन के सू-ए-मय-ख़ाना
सर झुकाए हुए हम जाते हैं
शरफ़ मुजद्दिदी