छोड़ कर मुझ को चली ऐ बेवफ़ा मैं भी तो हूँ
ले ख़बर मेरी भी ऐ तेग़-ए-अदा मैं भी तो हूँ
पी रहे हैं सब पियाली पर पियाली बज़्म में
मेरी बारी भी तो आए साक़िया मैं भी तो हूँ
ज़िक्र जब हूर-ओ-परी का सामने उन के हुआ
पहले तो सुनते रहे वो फिर कहा मैं भी तो हूँ
दुख़्त-ए-रज़ ज़ाहिद से बोली मुझ से घबराते हो क्यूँ
क्या तुम्हीं हो पाक-दामन पारसा मैं भी तो हूँ
ख़ास ज़ाहिद के लिए जन्नत तो हो सकती नहीं
आख़िर इक बंदा 'शरफ़' अल्लाह का मैं भी तो हूँ
ग़ज़ल
छोड़ कर मुझ को चली ऐ बेवफ़ा मैं भी तो हूँ
शरफ़ मुजद्दिदी