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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

बस इक पुकार पे दरवाज़ा खोल देते हैं
ज़रा सा सब्र भी इन आँसुओं से होता नहीं

शकील आज़मी




भूक में इश्क़ की तहज़ीब भी मर जाती है
चाँद आकाश पे थाली की तरह लगता है

शकील आज़मी




बिछड़ के भी वो मिरे साथ ही रहा हर दम
सफ़र के बा'द भी मैं रेल में सवार रहा

शकील आज़मी




बिछड़ के भी वो मिरे साथ ही रहा हर दम
सफ़र के बा'द भी मैं रेल में सवार रहा

शकील आज़मी




घर के दीवार-ओ-दर पे शाम ही से
नज़्म लिखता हुआ है सन्नाटा

शकील आज़मी




हादसे शहर का दस्तूर बने जाते हैं
अब यहाँ साया-ए-दीवार न ढूँढें कोई

शकील आज़मी




हादसे शहर का दस्तूर बने जाते हैं
अब यहाँ साया-ए-दीवार न ढूँढें कोई

शकील आज़मी