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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

हर घड़ी चश्म-ए-ख़रीदार में रहने के लिए
कुछ हुनर चाहिए बाज़ार में रहने के लिए

शकील आज़मी




इस बार उस की आँखों में इतने सवाल थे
मैं भी सवाल बन के सवालों में रह गया

शकील आज़मी




जाने कैसा रिश्ता है रहगुज़र का क़दमों से
थक के बैठ जाऊँ तो रास्ता बुलाता है

शकील आज़मी




जाने कैसा रिश्ता है रहगुज़र का क़दमों से
थक के बैठ जाऊँ तो रास्ता बुलाता है

शकील आज़मी




जब तलक उस ने हम से बातें कीं
जैसे फूलों के दरमियान थे हम

शकील आज़मी




ख़ुद को इतना भी न बचाया कर
बारिशें हों तो भीग जाया कर

शकील आज़मी




ख़ुद को इतना भी न बचाया कर
बारिशें हों तो भीग जाया कर

शकील आज़मी