कल बज़्म में सब पर निगह-ए-लुतफ़-ओ-करम थी
इक मेरी तरफ़ तू ने सितमगार न देखा
शैख़ मोहम्मद रोशन जोशिश लखनवी
आ कर तिरी गली में क़दम-बोसी के लिए
फिर आसमाँ की भूल गया राह आफ़्ताब
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
आई ईद व दिल में नहीं कुछ हवा-ए-ईद
ऐ काश मेरे पास तू आता बजाए ईद
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
आई ईद व दिल में नहीं कुछ हवा-ए-ईद
ऐ काश मेरे पास तू आता बजाए ईद
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
आब-ए-हयात जा के किसू ने पिया तो क्या
मानिंद-ए-ख़िज़्र जग में अकेला जिया तो क्या
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
आगे क्या तुम सा जहाँ में कोई महबूब न था
क्या तुम्हीं ख़ूब बने और कोई ख़ूब न था
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
आगे क्या तुम सा जहाँ में कोई महबूब न था
क्या तुम्हीं ख़ूब बने और कोई ख़ूब न था
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम