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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

ऐ मुसलमानो बड़ा काफ़िर है वो
जो न होवे ज़ुल्फ़-गीराँ का मुतीअ

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम




ऐसा करूँगा अब के गरेबाँ को तार तार
जो फिर किसी तरह से किसी से रफ़ू न हो

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम




ऐसी हवा बही कि है चारों तरफ़ फ़साद
जुज़ साया-ए-ख़ुदा कहीं दार-उल-अमाँ नहीं

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम




ऐसी हवा बही कि है चारों तरफ़ फ़साद
जुज़ साया-ए-ख़ुदा कहीं दार-उल-अमाँ नहीं

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम




अनल-हक़ की हक़ीक़त को जो हो मंसूर सो जाने
कि उस को आसमाँ चढ़ने से चढ़ना दार बेहतर था

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम




असीरों का नहीं कुछ शोर-ओ-ग़ुल ये आज ज़िंदाँ में
मिरे दीवाना-पन को देख कर ज़ंजीर हँसती है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम




असीरों का नहीं कुछ शोर-ओ-ग़ुल ये आज ज़िंदाँ में
मिरे दीवाना-पन को देख कर ज़ंजीर हँसती है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम