मैं किताब-ए-ख़ाक खोलूँ तो खुले
क्या नहीं मौजूद क्या मौजूद है
सरवत हुसैन
मैं सो रहा था और मिरी ख़्वाब-गाह में
इक अज़दहा चराग़ की लौ को निगल गया
सरवत हुसैन
मौत के दरिंदे में इक कशिश तो है 'सरवत'
लोग कुछ भी कहते हों ख़ुद-कुशी के बारे में
सरवत हुसैन
मौत के दरिंदे में इक कशिश तो है 'सरवत'
लोग कुछ भी कहते हों ख़ुद-कुशी के बारे में
सरवत हुसैन
मिलना और बिछड़ जाना किसी रस्ते पर
इक यही क़िस्सा आदमियों के साथ रहा
सरवत हुसैन
मिरे सीने में दिल है या कोई शहज़ादा-ए-ख़ुद-सर
किसी दिन उस को ताज-ओ-तख़्त से महरूम कर देखूँ
सरवत हुसैन
मिरे सीने में दिल है या कोई शहज़ादा-ए-ख़ुद-सर
किसी दिन उस को ताज-ओ-तख़्त से महरूम कर देखूँ
सरवत हुसैन