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पत्थरों में आइना मौजूद है | शाही शायरी
pattharon mein aaina maujud hai

ग़ज़ल

पत्थरों में आइना मौजूद है

सरवत हुसैन

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पत्थरों में आइना मौजूद है
यानी मुझ में दूसरा मौजूद है

ज़म्ज़मा-पैरा कोई तो है यहाँ
सेहन-ए-गुलशन में हवा मौजूद है

ख़्वाब हो कर रह गया अपने लिए
जाग उठने की सज़ा मौजूद है

इक समुंदर है दिल-ए-उश्शाक़ में
जिस में हर मौज-ए-बला मौजूद है

आसमानी घंटियों के शोर में
उस बदन की हर सदा मौजूद है

मैं किताब-ए-ख़ाक खोलूँ तो खुले
क्या नहीं मौजूद क्या मौजूद है

जन्नत-ए-अर्ज़ी बुलाती है तुम्हें
आओ 'सरवत' रास्ता मौजूद है