इक दास्तान अब भी सुनाते हैं फ़र्श ओ बाम
वो कौन थी जो रक़्स के आलम में मर गई
सरवत हुसैन
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जिसे अंजाम तुम समझती हो
इब्तिदा है किसी कहानी की
सरवत हुसैन
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ख़ुश-लिबासी है बड़ी चीज़ मगर क्या कीजे
काम इस पल है तिरे जिस्म की उर्यानी से
सरवत हुसैन
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ख़ुश-लिबासी है बड़ी चीज़ मगर क्या कीजे
काम इस पल है तिरे जिस्म की उर्यानी से
सरवत हुसैन
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ले आएगा इक रोज़ गुल ओ बर्ग भी 'सरवत'
बाराँ का मुसलसल ख़स-ओ-ख़ाशाक पे होना
सरवत हुसैन
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मैं आग देखता था आग से जुदा कर के
बला का रंग था रंगीनी-ए-क़बा से उधर
सरवत हुसैन
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मैं आग देखता था आग से जुदा कर के
बला का रंग था रंगीनी-ए-क़बा से उधर
सरवत हुसैन
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