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जाने उस ने क्या देखा शहर के मनारे में | शाही शायरी
jaane usne kya dekha shahr ke manare mein

ग़ज़ल

जाने उस ने क्या देखा शहर के मनारे में

सरवत हुसैन

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जाने उस ने क्या देखा शहर के मनारे में
फिर से हो गया शामिल ज़िंदगी के धारे में

इस्म भूल बैठे हम जिस्म भूल बैठे हम
वो हमें मिली यारो रात इक सितारे में

अपने अपने घर जा कर सुख की नींद सो जाएँ
तू नहीं ख़सारे में मैं नहीं ख़सारे में

मैं ने दस बरस पहले जिस का नाम रक्खा था
काम कर रही होगी जाने किस इदारे में

मौत के दरिंदे में इक कशिश तो है 'सरवत'
लोग कुछ भी कहते हों ख़ुद-कुशी के बारे में