सूरमा जिस के किनारों से पलट आते हैं
मैं ने कश्ती को उतारा है उसी पानी में
सरवत हुसैन
तेरी आशुफ़्ता-मिज़ाजी ऐ दिल
क्या ख़बर कौन नगर ले जाए
सरवत हुसैन
उम्र का कोह-ए-गिराँ और शब-ओ-रोज़ मिरे
ये वो पत्थर है जो कटता नहीं आसानी से
सरवत हुसैन
उम्र का कोह-ए-गिराँ और शब-ओ-रोज़ मिरे
ये वो पत्थर है जो कटता नहीं आसानी से
सरवत हुसैन
ये इंतिहा-ए-मसर्रत का शहर है 'सरवत'
यहाँ तो हर दर-ओ-दीवार इक समुंदर है
सरवत हुसैन
ये जो रौशनी है कलाम में कि बरस रही है तमाम में
मुझे सब्र ने ये समर दिया मुझे ज़ब्त ने ये हुनर दिया
सरवत हुसैन
ये जो रौशनी है कलाम में कि बरस रही है तमाम में
मुझे सब्र ने ये समर दिया मुझे ज़ब्त ने ये हुनर दिया
सरवत हुसैन