आते जाते मौसमों का सिलसिला बाक़ी रहे
रोज़ हम मिलते रहें और फ़ासला बाक़ी रहे
सरवर उस्मानी
आते जाते मौसमों का सिलसिला बाक़ी रहे
रोज़ हम मिलते रहें और फ़ासला बाक़ी रहे
सरवर उस्मानी
आँखों में दमक उट्ठी है तस्वीर-ए-दर-ओ-बाम
ये कौन गया मेरे बराबर से निकल कर
सरवत हुसैन
अपने अपने घर जा कर सुख की नींद सो जाएँ
तू नहीं ख़सारे में मैं नहीं ख़सारे में
सरवत हुसैन
अपने अपने घर जा कर सुख की नींद सो जाएँ
तू नहीं ख़सारे में मैं नहीं ख़सारे में
सरवत हुसैन
अपने लिए तज्वीज़ की शमशीर-ए-बरहना
और उस के लिए शाख़ से इक फूल उतारा
सरवत हुसैन
बहुत मुसिर थे ख़ुदायान-ए-साबित-ओ-सय्यार
सो मैं ने आइना ओ आसमाँ पसंद किए
सरवत हुसैन