शहज़ादी तुझे कौन बताए तेरे चराग़-कदे तक
कितनी मेहराबें पड़ती हैं कितने दर आते हैं
सरवत हुसैन
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सियाही फेरती जाती हैं रातें बहर ओ बर पे
इन्ही तारीकियों से मुझ को भी हिस्सा मिलेगा
सरवत हुसैन
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सोचता हूँ दयार-ए-बे-परवा
क्यूँ मिरा एहतिराम करने लगा
सरवत हुसैन
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सोचता हूँ दयार-ए-बे-परवा
क्यूँ मिरा एहतिराम करने लगा
सरवत हुसैन
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सोचता हूँ कि उस से बच निकलूँ
बच निकलने के ब'अद क्या होगा
सरवत हुसैन
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सुब्ह के शहर में इक शोर है शादाबी का
गिल-ए-दीवार, ज़रा बोसा-नुमा हो जाना
सरवत हुसैन
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सूरमा जिस के किनारों से पलट आते हैं
मैं ने कश्ती को उतारा है उसी पानी में
सरवत हुसैन
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