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हवा ओ अब्र को आसूदा-ए-मफ़्हूम कर देखूँ | शाही शायरी
hawa o abr ko aasuda-e-mafhum kar dekhun

ग़ज़ल

हवा ओ अब्र को आसूदा-ए-मफ़्हूम कर देखूँ

सरवत हुसैन

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हवा ओ अब्र को आसूदा-ए-मफ़्हूम कर देखूँ
शुरूअ-ए-फ़स्ल-ए-गुल है उन लबों को चूम कर देखूँ

कहाँ किस आइने में कौन सा चेहरा दमकता है
ज़रा हैरत-सरा-ए-आब-ओ-गिल में घूम कर देखूँ

मिरे सीने में दिल है या कोई शहज़ादा-ए-ख़ुद-सर
किसी दिन उस को ताज-ओ-तख़्त से महरूम कर देखूँ

गुज़रगाहें जहाँ पर ख़त्म होती हैं वहाँ क्या है
कोई रह-रव पलट कर आए तो मालूम कर देखूँ

बहुत दिन दश्त-ओ-दर में ख़ाक उड़ाते हुए 'सरवत'
अब अपने सेहन में अपनी फ़ज़ा में झूम कर देखूँ