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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

मुझे मंज़ूर गर तर्क-ए-तअल्लुक़ है रज़ा तेरी
मगर टूटेगा रिश्ता दर्द का आहिस्ता आहिस्ता

अहमद नदीम क़ासमी




मुसाफ़िर ही मुसाफ़िर हर तरफ़ हैं
मगर हर शख़्स तन्हा जा रहा है

अहमद नदीम क़ासमी




'नदीम' जो भी मुलाक़ात थी अधूरी थी
कि एक चेहरे के पीछे हज़ार चेहरे थे

अहमद नदीम क़ासमी




'नदीम' जो भी मुलाक़ात थी अधूरी थी
कि एक चेहरे के पीछे हज़ार चेहरे थे

अहमद नदीम क़ासमी




पा कर भी तो नींद उड़ गई थी
खो कर भी तो रत-जगे मिले हैं

अहमद नदीम क़ासमी




सारी दुनिया हमें पहचानती है
कोई हम सा भी न तन्हा होगा

अहमद नदीम क़ासमी




शाम को सुब्ह-ए-चमन याद आई
किस की ख़ुशबू-ए-बदन याद आई

अहमद नदीम क़ासमी