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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

ग़म-ए-जानाँ ग़म-ए-दौराँ की तरफ़ यूँ आया
जानिब शहर चले दुख़्तर-ए-दहक़ाँ जैसे

अहमद नदीम क़ासमी




हर लम्हा अगर गुरेज़-पा है
तू क्यूँ मिरे दिल में बस गया है

अहमद नदीम क़ासमी




इक सफ़ीना है तिरी याद अगर
इक समुंदर है मिरी तन्हाई

अहमद नदीम क़ासमी




इक उम्र के बा'द मुस्कुरा कर
तू ने तो मुझे रुला दिया है

अहमद नदीम क़ासमी




इतना मानूस हूँ सन्नाटे से
कोई बोले तो बुरा लगता है

अहमद नदीम क़ासमी




जन्नत मिली झूटों को अगर झूट के बदले
सच्चों को सज़ा में है जहन्नम भी गवारा

अहमद नदीम क़ासमी




जिस भी फ़नकार का शहकार हो तुम
उस ने सदियों तुम्हें सोचा होगा

अहमद नदीम क़ासमी