ग़म-ए-जानाँ ग़म-ए-दौराँ की तरफ़ यूँ आया
जानिब शहर चले दुख़्तर-ए-दहक़ाँ जैसे
अहमद नदीम क़ासमी
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हर लम्हा अगर गुरेज़-पा है
तू क्यूँ मिरे दिल में बस गया है
अहमद नदीम क़ासमी
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इक सफ़ीना है तिरी याद अगर
इक समुंदर है मिरी तन्हाई
अहमद नदीम क़ासमी
इक उम्र के बा'द मुस्कुरा कर
तू ने तो मुझे रुला दिया है
अहमद नदीम क़ासमी
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इतना मानूस हूँ सन्नाटे से
कोई बोले तो बुरा लगता है
अहमद नदीम क़ासमी
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जन्नत मिली झूटों को अगर झूट के बदले
सच्चों को सज़ा में है जहन्नम भी गवारा
अहमद नदीम क़ासमी
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जिस भी फ़नकार का शहकार हो तुम
उस ने सदियों तुम्हें सोचा होगा
अहमद नदीम क़ासमी