उस वक़्त का हिसाब क्या दूँ
जो तेरे बग़ैर कट गया है
अहमद नदीम क़ासमी
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यकसाँ हैं फ़िराक़-ए-वस्ल दोनों
ये मरहले एक से कड़े हैं
अहमद नदीम क़ासमी
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ज़िंदगी शम्अ की मानिंद जलाता हूँ 'नदीम'
बुझ तो जाऊँगा मगर सुबह तो कर जाऊँगा
अहमद नदीम क़ासमी
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अब इस के तसव्वुर से भी झुकने लगीं आँखें
नज़राना दिया है जिसे मैं ने दिल ओ जाँ का
अहमद राही
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अब न काबा की तमन्ना न किसी बुत की हवस
अब तो ज़िंदा हूँ किसी मरकज़-ए-इंसाँ के लिए
अहमद राही
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दर्द की बात किसी हँसती हुई महफ़िल में
जैसे कह दे किसी तुर्बत पे लतीफ़ा कोई
अहमद राही
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दिल के सुनसान जज़ीरों की ख़बर लाएगा
दर्द पहलू से जुदा हो के कहाँ जाएगा
अहमद राही
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