मैं कश्ती में अकेला तो नहीं हूँ
मिरे हमराह दरिया जा रहा है
अहमद नदीम क़ासमी
मैं ने समझा था कि लौट आते हैं जाने वाले
तू ने जा कर तो जुदाई मिरी क़िस्मत कर दी
अहमद नदीम क़ासमी
मैं तेरे कहे से चुप हूँ लेकिन
चुप भी तो बयान-ए-मुद्दआ है
अहमद नदीम क़ासमी
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मर जाता हूँ जब ये सोचता हूँ
मैं तेरे बग़ैर जी रहा हूँ
अहमद नदीम क़ासमी
मिरा वजूद मिरी रूह को पुकारता है
तिरी तरफ़ भी चलूँ तो ठहर ठहर जाऊँ
अहमद नदीम क़ासमी
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मिरे ख़ुदा ने किया था मुझे असीर-ए-बहिश्त
मिरे गुनह ने रिहाई मुझे दिलाई है
अहमद नदीम क़ासमी
मुझ को दुश्मन के इरादों पे भी प्यार आता है
तिरी उल्फ़त ने मोहब्बत मिरी आदत कर दी
अहमद नदीम क़ासमी
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