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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

चाँद भी निकला सितारे भी बराबर निकले
मुझ से अच्छे तो शब-ए-ग़म के मुक़द्दर निकले

अहमद मुश्ताक़




छत से कुछ क़हक़हे अभी तक
जालों की तरह लटक रहे हैं

अहमद मुश्ताक़




चुप कहीं और लिए फिरती थी बातें कहीं और
दिन कहीं और गुज़रते थे तो रातें कहीं और

अहमद मुश्ताक़




धुएँ से आसमाँ का रंग मैला होता जाता है
हरे जंगल बदलते जा रहे हैं कार-ख़ानों में

अहमद मुश्ताक़




दिल भर आया काग़ज़-ए-ख़ाली की सूरत देख कर
जिन को लिखना था वो सब बातें ज़बानी हो गईं

अहमद मुश्ताक़




दिल फ़सुर्दा तो हुआ देख के उस को लेकिन
उम्र भर कौन जवाँ कौन हसीं रहता है

अहमद मुश्ताक़




दुख के सफ़र पे दिल को रवाना तो कर दिया
अब सारी उम्र हाथ हिलाते रहेंगे हम

अहमद मुश्ताक़