तेरे होते हुए महफ़िल में जलाते हैं चराग़
लोग क्या सादा हैं सूरज को दिखाते हैं चराग़
अहमद फ़राज़
तेरे क़ामत से भी लिपटी है अमर-बेल कोई
मेरी चाहत को भी दुनिया की नज़र खा गई दोस्त
अहमद फ़राज़
तेरी बातें ही सुनाने आए
दोस्त भी दिल ही दुखाने आए
अहमद फ़राज़
तुझ से मिल कर तो ये लगता है कि ऐ अजनबी दोस्त
तू मिरी पहली मोहब्बत थी मिरी आख़िरी दोस्त
अहमद फ़राज़
तुम तकल्लुफ़ को भी इख़्लास समझते हो 'फ़राज़'
दोस्त होता नहीं हर हाथ मिलाने वाला
अहमद फ़राज़
तू इतनी दिल-ज़दा तो न थी ऐ शब-ए-फ़िराक़
आ तेरे रास्ते में सितारे लुटाएँ हम
अहमद फ़राज़
तू मोहब्बत से कोई चाल तो चल
हार जाने का हौसला है मुझे
अहमद फ़राज़