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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

शहर-वालों की मोहब्बत का मैं क़ाएल हूँ मगर
मैं ने जिस हाथ को चूमा वही ख़ंजर निकला

अहमद फ़राज़




शिद्दत-ए-तिश्नगी में भी ग़ैरत-ए-मय-कशी रही
उस ने जो फेर ली नज़र मैं ने भी जाम रख दिया

अहमद फ़राज़




सिलसिले तोड़ गया वो सभी जाते जाते
वर्ना इतने तो मरासिम थे कि आते जाते

अहमद फ़राज़




सिलवटें हैं मिरे चेहरे पे तो हैरत क्यूँ है
ज़िंदगी ने मुझे कुछ तुम से ज़ियादा पहना

अहमद फ़राज़




सितम तो ये है कि ज़ालिम सुख़न-शनास नहीं
वो एक शख़्स कि शाएर बना गया मुझ को

अहमद फ़राज़




सो देख कर तिरे रुख़्सार ओ लब यक़ीं आया
कि फूल खिलते हैं गुलज़ार के अलावा भी

अहमद फ़राज़




सुना है बोले तो बातों से फूल झड़ते हैं
ये बात है तो चलो बात कर के देखते हैं

अहमद फ़राज़