ख़ुदी की दौलत-ए-उज़मा ख़ुदा ने मुझ को बख़्शी है
क़लंदर हूँ मैं शाहों की गदाई कर नहीं सकता
अफ़ज़ल इलाहाबादी
मैं चाहता था कि उस को गुलाब पेश करूँ
वो ख़ुद गुलाब था उस को गुलाब क्या देता
अफ़ज़ल इलाहाबादी
में इज़्तिराब के आलम में रक़्स करता रहा
कभी ग़ुबार की सूरत कभी धुआँ बन कर
अफ़ज़ल इलाहाबादी
तेरी निस्बत मिली मुझे जब से
मैं कोई आरज़ू नहीं करता
अफ़ज़ल इलाहाबादी
तू जुगनू है फ़क़त रातों के दामन में बसेरा कर
मैं सूरज हूँ तू मुझ से आश्नाई कर नहीं सकता
अफ़ज़ल इलाहाबादी
वो जिस की राह में मैं ने दिए जलाए थे
गया वो शख़्स मुझे छोड़ कर अँधेरे में
अफ़ज़ल इलाहाबादी
वो जिस ने देखा नहीं इश्क़ का कभी मकतब
मैं उस के हाथ में दिल की किताब क्या देता
अफ़ज़ल इलाहाबादी