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जो मिरी आरज़ू नहीं करता | शाही शायरी
jo meri aarzu nahin karta

ग़ज़ल

जो मिरी आरज़ू नहीं करता

अफ़ज़ल इलाहाबादी

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जो मिरी आरज़ू नहीं करता
उस की मैं जुस्तुजू नहीं करता

हिज्र-ए-जानाँ में अपने अश्कों से
कौन है जो वुज़ू नहीं करता

वो तो तेरा कलीम था वर्ना
सब से तू गुफ़्तुगू नहीं करता

सय्यद-उल-अम्बिया थे वो वर्ना
सब को तू रू-ब-रू नहीं करता

तेरी निस्बत मिली मुझे जब से
मैं कोई आरज़ू नहीं करता

हर घड़ी जिस की बात करता हूँ
मुझ से वो गुफ़्तुगू नहीं करता

दर-ब-दर यूँ नहीं भटकता मैं
जो फ़रामोश तू नहीं करता

हो नहीं पाती शाइरी 'अफ़ज़ल'
नज़्र जब तक लहू नहीं करता