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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

तू परिंदों की तरह उड़ने की ख़्वाहिश छोड़ दे
बे-ज़मीं लोगों के सर पर आसमाँ रहता नहीं

अफ़ज़ल गौहर राव




यहाँ भला कौन अपनी मर्ज़ी से जी रहा है
सभी इशारे तिरी नज़र से बंधे हुए हैं

अफ़ज़ल गौहर राव




ये कैसे ख़्वाब की ख़्वाहिश में घर से निकला हूँ
कि दिन में चलते हुए नींद आ रही है मुझे

अफ़ज़ल गौहर राव




अब जो पत्थर है आदमी था कभी
इस को कहते हैं इंतिज़ार मियाँ

अफ़ज़ल ख़ान




बना रक्खी हैं दीवारों पे तस्वीरें परिंदों की
वगर्ना हम तो अपने घर की वीरानी से मर जाएँ

अफ़ज़ल ख़ान




भाव ताओ में कमी बेशी नहीं हो सकती
हाँ मगर तुझ से ख़रीदार को ना कैसे हो

अफ़ज़ल ख़ान




बिछड़ने का इरादा है तो मुझ से मशवरा कर लो
मोहब्बत में कोई भी फ़ैसला ज़ाती नहीं होता

अफ़ज़ल ख़ान