कौन सी ऐसी कमी मेरे ख़द-ओ-ख़ाल में है
आइना ख़ुश नहीं होता कभी मिल कर मुझ से
अफ़ज़ल गौहर राव
किस प्यास से ख़ाली हुआ मश्कीज़ा हमारा
दरिया से जो उठ आए हैं सहरा की तरफ़ हम
अफ़ज़ल गौहर राव
क्या मुसीबत है कि हर दिन की मशक़्क़त के एवज़
बाँध जाता है कोई रात का पत्थर मुझ से
अफ़ज़ल गौहर राव
मैं एक इश्क़ में नाकाम क्या हुआ 'गौहर'
हर एक काम में मुझ को ख़सारा होने लगा
अफ़ज़ल गौहर राव
मिरी नज़र तो ख़लाओं ने बाँध रक्खी थी
मुझे ज़मीं से कहाँ आसमाँ दिखाई दिया
अफ़ज़ल गौहर राव
मिरी तो आँख मिरा ख़्वाब टूटने से खुली
न जाने पाँव धरा नींद में कहाँ मैं ने
अफ़ज़ल गौहर राव
तुम्हें ही सहरा सँभालने की पड़ी हुई है
निकल के घर से भी हम तो घर से बंधे हुए हैं
अफ़ज़ल गौहर राव