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निकला है चाँद शब की पज़ीराई के लिए | शाही शायरी
nikla hai chand shab ki pazirai ke liye

ग़ज़ल

निकला है चाँद शब की पज़ीराई के लिए

शहरयार

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निकला है चाँद शब की पज़ीराई के लिए
ये उज़्र कम है अंजुमन-आराई के लिए

था बोलना तो हो गए ख़ामोश हम सभी
क्या कुछ किया है शोहरत ओ रुस्वाई के लिए

पल भर में कैसे लोग बदल जाते हैं यहाँ
देखो कि ये मुफ़ीद है बीनाई के लिए

सरसब्ज़ मेरी शाख़-ए-हुनर क्यूँ नहीं हुई
ये मसअला है तेरे तमन्नाई के लिए

है आज ये गिला कि अकेला है 'शहरयार'
तरसोगे कल हुजूम में तन्हाई के लिए