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किस फ़िक्र किस ख़याल में खोया हुआ सा है | शाही शायरी
kis fikr kis KHayal mein khoya hua sa hai

ग़ज़ल

किस फ़िक्र किस ख़याल में खोया हुआ सा है

शहरयार

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किस फ़िक्र किस ख़याल में खोया हुआ सा है
दिल आज तेरी याद को भूला हुआ सा है

गुलशन में इस तरह से कब आई थी फ़स्ल-ए-गुल
हर फूल अपनी शाख़ से टूटा हुआ सा है

चल चल के थक गया है कि मंज़िल नहीं कोई
क्यूँ वक़्त एक मोड़ पे ठहरा हुआ सा है

क्या हादिसा हुआ है जहाँ में कि आज फिर
चेहरा हर एक शख़्स का उतरा हुआ सा है

नज़राना तेरे हुस्न को क्या दें कि अपने पास
ले दे के एक दिल है सो टूटा हुआ सा है

पहले थे जो भी आज मगर कारोबार-ए-इश्क़
दुनिया के कारोबार से मिलता हुआ सा है

लगता है उस की बातों से ये 'शहरयार' भी
यारों के इल्तिफ़ात का मारा हुआ सा है