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थक गया है दिल-ए-वहशी मिरा फ़रियाद से भी | शाही शायरी
thak gaya hai dil-e-wahshi mera fariyaad se bhi

ग़ज़ल

थक गया है दिल-ए-वहशी मिरा फ़रियाद से भी

परवीन शाकिर

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थक गया है दिल-ए-वहशी मिरा फ़रियाद से भी
जी बहलता नहीं ऐ दोस्त तिरी याद से भी

ऐ हवा क्या है जो अब नज़्म-ए-चमन और हुआ
सैद से भी हैं मरासिम तिरे सय्याद से भी

क्यूँ सरकती हुई लगती है ज़मीं याँ हर दम
कभी पूछें तो सबब शहर की बुनियाद से भी

बर्क़ थी या कि शरार-ए-दिल-ए-आशुफ़्ता था
कोई पूछे तो मिरे आशियाँ-बर्बाद से भी

बढ़ती जाती है कशिश वादा गह-ए-हस्ती की
और कोई खींच रहा है अदम-आबाद से भी