दिन भर तो मैं दुनिया के धंदों में खोया रहा
जब दीवारों से धूप ढली तुम याद आए
नासिर काज़मी
दिन गुज़ारा था बड़ी मुश्किल से
फिर तिरा वादा-ए-शब याद आया
नासिर काज़मी
गए दिनों का सुराग़ ले कर किधर से आया किधर गया वो
अजीब मानूस अजनबी था मुझे तो हैरान कर गया वो
नासिर काज़मी
गिरफ़्ता-दिल हैं बहुत आज तेरे दीवाने
ख़ुदा करे कोई तेरे सिवा न पहचाने
नासिर काज़मी
हँसता पानी रोता पानी
मुझ को आवाज़ें देता था
नासिर काज़मी
हाल-ए-दिल हम भी सुनाते लेकिन
जब वो रुख़्सत हुआ तब याद आया
नासिर काज़मी
हमारे घर की दीवारों पे 'नासिर'
उदासी बाल खोले सो रही है
नासिर काज़मी
इस क़दर रोया हूँ तेरी याद में
आईने आँखों के धुँदले हो गए
नासिर काज़मी
इस शहर-ए-बे-चराग़ में जाएगी तू कहाँ
आ ऐ शब-ए-फ़िराक़ तुझे घर ही ले चलें
नासिर काज़मी