उम्र भर की नवा-गरी का सिला
ऐ ख़ुदा कोई हम-नवा ही दे
नासिर काज़मी
तू ने तारों से शब की माँग भरी
मुझ को इक अश्क-ए-सुब्ह-गाही दे
नासिर काज़मी
चुप चुप क्यूँ रहते हो 'नासिर'
ये क्या रोग लगा रक्खा है
नासिर काज़मी
हाल-ए-दिल हम भी सुनाते लेकिन
जब वो रुख़्सत हुआ तब याद आया
नासिर काज़मी
हँसता पानी रोता पानी
मुझ को आवाज़ें देता था
नासिर काज़मी
गिरफ़्ता-दिल हैं बहुत आज तेरे दीवाने
ख़ुदा करे कोई तेरे सिवा न पहचाने
नासिर काज़मी
गए दिनों का सुराग़ ले कर किधर से आया किधर गया वो
अजीब मानूस अजनबी था मुझे तो हैरान कर गया वो
नासिर काज़मी
दिन गुज़ारा था बड़ी मुश्किल से
फिर तिरा वादा-ए-शब याद आया
नासिर काज़मी
दिन भर तो मैं दुनिया के धंदों में खोया रहा
जब दीवारों से धूप ढली तुम याद आए
नासिर काज़मी