रह-नवर्द-ए-बयाबान-ए-ग़म सब्र कर सब्र कर
कारवाँ फिर मिलेंगे बहम सब्र कर सब्र कर
नासिर काज़मी
रात कितनी गुज़र गई लेकिन
इतनी हिम्मत नहीं कि घर जाएँ
नासिर काज़मी
पहाड़ों से चली फिर कोई आँधी
उड़े जाते हैं औराक़-ए-ख़िज़ानी
नासिर काज़मी
ओ मेरे मसरूफ़ ख़ुदा
अपनी दुनिया देख ज़रा
नासिर काज़मी
निय्यत-ए-शौक़ भर न जाए कहीं
तू भी दिल से उतर न जाए कहीं
नासिर काज़मी
नींद आती नहीं तो सुबह तलक
गर्द-ए-महताब का सफ़र देखो
नासिर काज़मी
नई दुनिया के हंगामों में 'नासिर'
दबी जाती हैं आवाज़ें पुरानी
नासिर काज़मी
नए कपड़े बदल कर जाऊँ कहाँ और बाल बनाऊँ किस के लिए
वो शख़्स तो शहर ही छोड़ गया मैं बाहर जाऊँ किस के लिए
नासिर काज़मी
न मिला कर उदास लोगों से
हुस्न तेरा बिखर न जाए कहीं
नासिर काज़मी