गिरफ़्ता-दिल हैं बहुत आज तेरे दीवाने
ख़ुदा करे कोई तेरे सिवा न पहचाने
मिटी मिटी सी उमीदें थके थके से ख़याल
बुझे बुझे से निगाहों में ग़म के अफ़्साने
हज़ार शुक्र कि हम ने ज़बाँ से कुछ न कहा
ये और बात कि पूछा न अहल-ए-दुनिया ने
ब-क़द्र-ए-तिश्ना-लबी पुर्सिश-ए-वफ़ा न हुई
छलक के रह गए तेरी नज़र के पैमाने
ख़याल आ गया मानूस रहगुज़ारों का
पलट के आ गए मंज़िल से तेरे दीवाने
कहाँ है तू कि तिरे इंतिज़ार में ऐ दोस्त
तमाम रात सुलगते हैं दिल के वीराने
उमीद-ए-पुर्सिश-ए-ग़म किस से कीजिए 'नासिर'
जो अपने दिल पे गुज़रती है कोई क्या जाने
ग़ज़ल
गिरफ़्ता-दिल हैं बहुत आज तेरे दीवाने
नासिर काज़मी