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गिरफ़्ता-दिल हैं बहुत आज तेरे दीवाने | शाही शायरी
girafta-dil hain bahut aaj tere diwane

ग़ज़ल

गिरफ़्ता-दिल हैं बहुत आज तेरे दीवाने

नासिर काज़मी

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गिरफ़्ता-दिल हैं बहुत आज तेरे दीवाने
ख़ुदा करे कोई तेरे सिवा न पहचाने

मिटी मिटी सी उमीदें थके थके से ख़याल
बुझे बुझे से निगाहों में ग़म के अफ़्साने

हज़ार शुक्र कि हम ने ज़बाँ से कुछ न कहा
ये और बात कि पूछा न अहल-ए-दुनिया ने

ब-क़द्र-ए-तिश्ना-लबी पुर्सिश-ए-वफ़ा न हुई
छलक के रह गए तेरी नज़र के पैमाने

ख़याल आ गया मानूस रहगुज़ारों का
पलट के आ गए मंज़िल से तेरे दीवाने

कहाँ है तू कि तिरे इंतिज़ार में ऐ दोस्त
तमाम रात सुलगते हैं दिल के वीराने

उमीद-ए-पुर्सिश-ए-ग़म किस से कीजिए 'नासिर'
जो अपने दिल पे गुज़रती है कोई क्या जाने