फिर सावन रुत की पवन चली तुम याद आए
फिर पत्तों की पाज़ेब बजी तुम याद आए
फिर कूजें बोलीं घास के हरे समुंदर में
रुत आई पीले फूलों की तुम याद आए
फिर कागा बोला घर के सूने आँगन में
फिर अमृत रस की बूँद पड़ी तुम याद आए
पहले तो मैं चीख़ के रोया और फिर हँसने लगा
बादल गरजा बिजली चमकी तुम याद आए
दिन भर तो मैं दुनिया के धंदों में खोया रहा
जब दीवारों से धूप ढली तुम याद आए
ग़ज़ल
फिर सावन रुत की पवन चली तुम याद आए
नासिर काज़मी