दिल धड़कने का सबब याद आया
वो तिरी याद थी अब याद आया
आज मुश्किल था सँभलना ऐ दोस्त
तू मुसीबत में अजब याद आया
दिन गुज़ारा था बड़ी मुश्किल से
फिर तिरा वादा-ए-शब याद आया
तेरा भूला हुआ पैमान-ए-वफ़ा
मर रहेंगे अगर अब याद आया
फिर कई लोग नज़र से गुज़रे
फिर कोई शहर-ए-तरब याद आया
हाल-ए-दिल हम भी सुनाते लेकिन
जब वो रुख़्सत हुआ तब याद आया
बैठ कर साया-ए-गुल में 'नासिर'
हम बहुत रोए वो जब याद आया
ग़ज़ल
दिल धड़कने का सबब याद आया
नासिर काज़मी