जुदाइयों के ज़ख़्म दर्द-ए-ज़िंदगी ने भर दिए
तुझे भी नींद आ गई मुझे भी सब्र आ गया
नासिर काज़मी
जिन्हें हम देख कर जीते थे 'नासिर'
वो लोग आँखों से ओझल हो गए हैं
नासिर काज़मी
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इस शहर-ए-बे-चराग़ में जाएगी तू कहाँ
आ ऐ शब-ए-फ़िराक़ तुझे घर ही ले चलें
नासिर काज़मी
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इस क़दर रोया हूँ तेरी याद में
आईने आँखों के धुँदले हो गए
नासिर काज़मी