फिर मिले हम उन से फिर यारी बढ़ी
और उलझा दिल गिरफ़्तारी बढ़ी
मेहरबानी चारासाज़ों की बढ़ी
जब बढ़ा दरमाँ तो बीमारी बढ़ी
हिज्र की घड़ियाँ कठिन होती गईं
दिन के नाले रात की ज़ारी बढ़ी
फिर तसव्वुर में किसी के नींद उड़ी
फिर वही रातों की बेदारी बढ़ी
सख़्तियाँ राह-ए-मोहब्बत की न पूछ
हर क़दम इक ताज़ा दुश्वारी बढ़ी
ख़ैर साक़ी की सलामत मय-कदा
जिस क़दर पी उतनी हुश्यारी बढ़ी
दौर-दौरे हैं 'मुबारक' जाम के
इंतिहा की अपनी मय-ख़्वारी बढ़ी
ग़ज़ल
फिर मिले हम उन से फिर यारी बढ़ी
मुबारक अज़ीमाबादी