जिसे पढ़ते तो याद आता था तेरा फूल सा चेहरा
हमारी सब किताबों में इक ऐसा बाब रहता था
असअ'द बदायुनी
जिसे न मेरी उदासी का कुछ ख़याल आया
मैं उस के हुस्न पे इक रोज़ ख़ाक डाल आया
असअ'द बदायुनी
जम गई धूल मुलाक़ात के आईनों पर
मुझ को उस की न उसे मेरी ज़रूरत कोई
असअ'द बदायुनी
जब तलक आज़ाद थे हर इक मसाफ़त थी वबाल
जब पड़ी ज़ंजीर पैरों में सफ़र अच्छे लगे
असअ'द बदायुनी
हवा के अपने इलाक़े हवस के अपने मक़ाम
ये कब किसी को ज़फ़र-याब देख सकते हैं
असअ'द बदायुनी
हवा दरख़्तों से कहती है दुख के लहजे में
अभी मुझे कई सहराओं से गुज़रना है
असअ'द बदायुनी
ग़ैरों को क्या पड़ी है कि रुस्वा करें मुझे
इन साज़िशों में हाथ किसी आश्ना का है
what is it to strangers to spread this calumny
the conspiracy is the work of someone close to me
असअ'द बदायुनी
गाँव की आँख से बस्ती की नज़र से देखा
एक ही रंग है दुनिया को जिधर से देखा
असअ'द बदायुनी
देखने के लिए सारा आलम भी कम
चाहने के लिए एक चेहरा बहुत
असअ'द बदायुनी