जिसे न मेरी उदासी का कुछ ख़याल आया
मैं उस के हुस्न पे इक रोज़ ख़ाक डाल आया
ये इश्क़ ख़ूब रहा बावजूद मिलने के
न दरमियान कभी लम्हा-ए-विसाल आया
इशारा करने लगे हैं भँवर के हाथ हमें
ख़ोशा कि फिर दिल-दरिया में इश्तिआल आया
मुरव्वतों के समर दाग़दार होने लगे
मोहब्बतों के शजर तुझ पे क्या ज़वाल आया
हसीन शक्ल को देखा ख़ुदा को याद किया
किसी गुनाह का दिल में कहाँ ख़याल आया
ख़ुदा बचाए तसव्वुफ़-गज़ीदा लोगों से
कोई जो शेर भला सुन लिया तो हाल आया
ग़ज़ल
जिसे न मेरी उदासी का कुछ ख़याल आया
असअ'द बदायुनी