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अजब दिन थे कि इन आँखों में कोई ख़्वाब रहता था | शाही शायरी
ajab din the ki in aankhon mein koi KHwab rahta tha

ग़ज़ल

अजब दिन थे कि इन आँखों में कोई ख़्वाब रहता था

असअ'द बदायुनी

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अजब दिन थे कि इन आँखों में कोई ख़्वाब रहता था
कभी हासिल हमें ख़स-ख़ाना ओ बरफ़ाब रहता था

उभरना डूबना अब कश्तियों का हम कहाँ देखें
वो दरिया क्या हुआ जिस में सदा गिर्दाब रहता था

वो सूरज सो गया है बर्फ़-ज़ारों में कहीं जा कर
धड़कता रात दिन जिस से दिल-ए-बेताब रहता था

जिसे पढ़ते तो याद आता था तेरा फूल सा चेहरा
हमारी सब किताबों में इक ऐसा बाब रहता था

सुहाने मौसमों में उस की तुग़्यानी क़यामत थी
जो दरिया गर्मियों की धूप में पायाब रहता था